चुनावों के बाद किसानो की अनदेखी के कारण भाकियू ने नहीं किया किसी राजनितिक दल समर्थन

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bhakiu not supporting any political party

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी को विधानसभा के प्रथम चरण का मतदान होगा. यहाँ 73 सीटों के लिए मतदान होगा. यहाँ भाकियू यानि भारतीय किसान यूनियन की एक समय में धाक चलती थी. लेकिन इन चुनावों में इस बार भाकियू की चुप्पी हैरान करने वाली हैं. भाकियू ने अभी तक किसी भी राजनेतिक दल के प्रति अपना समर्थन प्रदर्शित नहीं किया हैं. वासत्व में भाकियू प्रमुख नरेश टिकेत किसानो के प्रति राजनितिक दलों के उदासीन रवैये से बहुत नाराज़ हैं. इसलिए उन्होंने किसानो से अपने विवेक के अनुसार अपना मत इस्तमाल करने को कहा हैं.

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साथ ही भाकियू प्रमुख ने भाकियू से जुड़े किसी भी सदस्य को किसी भी राजनितिक दल के प्रचार न करने को भी कहा हैं.इस बारे में भाकियू प्रमुख नरेश टिकेत ने कहा कि सभी सियासी दल किसानो के नाम पर वोट तो मांगते है, लेकिन सत्ता में आते ही उनकी परेशानीयों को भूल जाते हैं. सपा सरकार ने किसानो का मिल मालिको पर 1200 करोड़ रुपए का गन्ना ब्याज माफ़ करा दिया. पिछले तीन सैलून में गन्ना मुल्य में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने किसान आयोग की रिपोर्ट लागू करने की बात कही थी लेकिन आज तक वो रिपोर्ट लागू नहीं हो पायी. ऐसे में किसान अपनी इच्छा से किसी भी उम्मीदवार को वोट दे सकता हैं.

हालाँकि भारतीय किसान यूनियन एक गैर राजनेतिक संगठन हैं. लेकिन बहुत बार भाकियू बहुत से राजनेतिक दलों से जुड़ता और अलग होता रहा हैं. भाकियू से वर्ष 2007 में राकेश टिकेट खतोली विधानसभा सीट से चुनाव लडे थे. लेकिन यहाँ उनकी इतनी बूरी हार हुई कि वो जमानत भी नहीं बचा सकें. इससे भाकियू से जुड़े लोगो को ये समझ आ गया कि राजनीति से जुड़ने में भाकियू का कुछ भला नहीं हो सकता. इसके बाद 2013 के दंगों के बाद भी 2014 राकेश टिकेत रालोद की और से अमरोहा की संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरे लेकिन यहाँ भी चौथे नंबर पर आये तब से भाकियू की राजनितिक पकड़ कमज़ोर होती गयी.

हालाँकि अजित सिंह की पार्टी रालोद के प्रति भाकियू का रुख नरम रहा हैं लेकिन रालोद का आधार केवल पश्चिमी यूपी तक ही सीमित हैं. ऐसे में अब किसानो की  प्रदेश की राजनीती  में रूचि कम होती दिख रही हैं.

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