पिता या पुत्र : कौन करेगा साइकिल की सवारी

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Father or son who will ride bicycle

समाजवादी पार्टी में पुत्र यानि अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह से सत्ता अपने अधिकार में करने के लिए बेताब दिख रहें. और मुलायम अभी इस सत्ता हस्तांतरण के लिए तैयार नहीं हैं. कल मुलायम सिंह चुनाव आयोग में अपना पक्ष रखने गए थे. मुलायम के साथ शिवपाल यादव, अमर सिंह और जया प्रदा भी मौजूद थीं. और आज अखिलेश खेमा साइकिल पर अपना दांवा ठोकने चुनाव आयोग पहुँच गया. अखिलेश यादव की और से चुनाव आयोग पहुंचे नेताओं में रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल और किरणमय नंदा हैं.

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साइकिल चुनाव चिन्ह अखिलेश को मिलेगा या नहीं इस पर अभी संशय बरकरार हैं. ऐसे में अखिलेश यादव सभी विकल्पों पर विचार कर रहे होंगे. सूत्रों की मानें तो अगर अखिलेश को ‘साइकिल’ चुनाव चिह्न नहीं मिलता है तो वे मोटरसाइकिल को सिंबल के तौर पर अपना सकते हैं.

क्या अब अखिलेश खेमे के लिए साइकिल चुनाव चिन्ह मायने नहीं रखता

आपको याद दिला दें अखिलेश यादव ने सपा से हुए 12 घंटे के निष्कासन के बाद ये ब्यान जारी किया था कि सपा उनकी पार्टी हैं. इसका मतलब ये भी निकाल सकते हैं कि अखिलेश किसी भी हाल में साइकिल चुनाव चिन्ह हो नहीं छोड़ना चाहते. इसका एक कारण यह भी हैं कि साइकिल और सपा एक दुसरे के पूरक बन चुके हैं. लेकिन सपा के एमएलसी राजपाल कश्यप का कहना है कि ‘हम साइकिल सिंबल अपने पास रखेंगे। लेकिन बड़ी बात ये है कि अखिलेश खुद अपने आप में सिंबल हैं. चुनाव में जिसके पास लोगों का सपोर्ट होता होता है, वही मायने रखता है.”

कमोबेश ऐसा ही बयान  किरणमय नंदा का भी आया उन्होंने कहा कि ‘पार्टी सिंबल बड़ी चीज नहीं है। हमारे पास सबकुछ है। हम नेताजी से अलग नहीं, बल्कि उनके साथ हैं।’ इन सबके बीच में मुख्य बात यह है कि चुनाव आयोग शायद दोनों ही धड़ो को साइकिल चुनाव चिन्ह से वंचित कर दें. और दोनों को अस्थ्याई रूप से कोइ चुनाव चिन्ह आवंटित कर दें.

यहाँ इस बात का जिक्र करना भी जरूरी हैं कि भले ही पार्टी नेता जी की बनाई हुई हो लेकिन 90% MLA का सपोर्ट अखिलेश यादव के साथ हैं.

उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनावों का फोकस सपा के पिता पुत्र की लडाई पर केन्द्रित हो जायेगा ये किसे ने सोचा भी नहीं होगा. आज भी इस विवाद में कुछ और अध्याय जुड़ेंगे. ये वास्तव में उत्सुकता का विषय रहेगा कि अब साइकिल की सवारी कौन करेगा?

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