सहारनपुर हिंसा: बसपा व भाजपा के आरोप-प्रत्यारोप दोनों ही दलों की नाकामी बयान कर रहे हैं.

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Saharanpur violence: Both BSP and BJP's allegations are being misinformed by the parties

एक ओर भाजपा केंद्र में अपने तीन साल पूरे होने का जश्न मना रही हैं दुसरी ओर सहारनपुर में चल रही हिंसा केंद्र सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा रही हैं.  पिछले 10 दिनों से  जातीय हिंसा की आग में झुलस रहा सहारनपुर अभी तक शांत नहीं हुआ हैं. अभी अभी प्रदेश में बीजेपी की सरकार आयी हैं. ऐसे में केंद्र का सहारनपुर को लेकर परेशान होना लाजमी भी हैं. इस हिंसा से चिंतित केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है. 

Saharanpur violence: Both BSP and BJP's allegations are being misinformed by the parties

टीवी रिपोर्ट्स के मुताबिक सहारनपुर में हुई हिंसा और तनाव को लेकर यूपी की इंटेलिजेंस विभाग ने सीएम योगी आदित्य नाथ को रिपोर्ट सौंपी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मायावती के भाई आनंद कुमार भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर के संपर्क में थे. हालाँकि मायावती ने इन सभी आरोपों को खारिज़ करते हुए एक अलग ही थ्योरी पेश की. मायावती का कहना हैं कि भीम आर्मी के पीछेSaharanpur violence: Both BSP and BJP’s allegations are being misinformed by the parties भाजपा का ही सपोर्ट है.

ठाकुरों और दलितों के बीच हुए संघर्ष के कारण व्याप्त तनाव के बाद 23 मई को मायावती सहारनपुर पहुँची थी. मायावती सहारनपुर सड़क मार्ग की बजाय हेलीकॉप्टर से जाना चाहती थी लेकिन इसकी अनुमति उन्हें नहीं मिली. इसका गुस्सा भी मायावती ने भाजपा पर यह कहकर निकाला कि अगर सड़क मार्ग से जाते हुए उन्हें कुछ होता हैं तो इसकी जिम्मेदार भाजपा होंगी. खैर मायावती का सहारनपुर का दौरा दलितों के लिए था या भीम आर्मी के साथ जुड़े लोगों का जंतर मंतर पर मौजूद हुजूम देखकर ये अभी कहना मुश्किल हैं, लेकिन सहारनपुर में भड़क रही जातिवाद की हिंसा के कम न हो पाने के पीछे का एक कारण राजनेतिक इच्छा शक्ति की कमी व अति महत्वकांक्षी लोगों का एक साथ आना भी हैं.

ये हमारे देश का विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का दुर्भाग्य हैं कि यहाँ जाति अथवा धर्म के नाम पर होने वाली हिंसा के वास्तविक नुकसान से जयादा हमारे नेता अपने पार्टीगत या राजनैतिक नफे नुकसान की गणना अधिक करने लगते हैं. सहारनपुर में चल रही हिंसा के बाद भाजपा को ये डर सता सकता हैं कि वो दलित वर्ग जो बसपा से निकलकर अन्य विकल्पों को तलाश कर रहा हैं कहीं भाजपा से मुहं न मोड़ लें. वहीँ बहिन जी को ये चिंता होगी कहीं भीम आर्मी उनकी परी की हलकी पड़ती धार को बिलकुल ही कुंद न कर दें. और आम नागरिक सिर्फ और सिर्फ ये सोच रहा होगा कि जल्द जल्द से ये सब झगड़े खत्म हो जिससे अपना कम धंधा फिर से बिना किसी टेंशन के चालू कर सकें.   

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