यूपी चुनाव: जीत का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए तैयार हैं राजा भैया

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Ready to break the record of winning Raja Bhaiya

पिछले कुछ दशको में भारत ने बहुत से बदलाव देखे हैं. एक ऐसा देश जहाँ की जनता अपने राजाओं को भगवान् तुल्य मानती थी आज लोक तंत्र में खुद भगवान की तरह पूजी जा रही हैं. हाँ यहाँ ये बात भी कि जनता की पूछ सिर्फ चुनावी रण में ही होती हैं.लेकिन उत्तर प्रदेश के कुंडा में आज भी जनता अपने राजा के दरबार में फैसले कराने पहुँच जाते हैं. ये दरबार हैं कुंडा से पिछले 5 बार से निर्दलीय विधायक रहे चुके राजा भैया का. कानूनी कागजो  में राजा भैया के खिलाफ दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज हैं  लेकिन कुंडा की जनता के लिए तो रघुराज प्रताप सिंह सिर्फ उनके ‘सरकार’ हैं.

Ready to break the record of winning Raja Bhaiya

इस बार फिर राजा भैया विधानसभा चुनावों में खड़े हैं. राजा भैया हमेशा निर्दलीय ही चुनाव लड़ते हैं इसलिए उनका स्थायी कोई चुनाव चिन्ह नहीं हैं. इस बार चुनाव आयोग ने राजा भैया को आरी चुनाव चिन्ह दिया हैं. अब  रघुराज प्रताप सिंह को किसी पार्टी के नाम के साथ की कुछ जरूरत हैं भी नहीं. निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ने और जीतने वाले राजा भैया की लखनऊ में तूती बोलती हैं. पिछले चुनाव में राजा भैया 88 हजार वोटों से जीतकर प्रदेश में सबसे अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी. राजा भैया कल्याण सिंह, स्वर्गीय राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह के कैबिनेट में भी मंत्री रह चुके हैं.

बसपा सुप्रीमो बहनजी से ही राजा भैया के रिश्ते ठीक नहीं रहे. मायावती ने ना सिर्फ राजा भैया से दूरी बनाए रखी बल्कि 2002 में पोटा के तहत् उसे गिरफ्तार भी करा दिया. ऐसा कहा जाता हैं किमायावती को शक था कि राजा भैया उनकी सरकार गिरवा देगा. 2007 में मायावती के वापस सत्ता में आने के बाद राजा भैया पर डीएसपी की हत्या का आरोप लगा, लेकिन कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया.

अपने ऊपर लगे आरोपों पर राजा भैया का कहना हैं कि ये सब राजनीतिक साजिश थी. जिस तरह से राजा भैया कुंडा में चुनाव प्रचार कर रहे हैं उससे ये लगता हैं कि अब उनका लक्ष्य कल्याण सिंह द्वारा दी गयी ‘कुंडा का गुंडा’ की छवि से बाहर निकलने का हैं. अब राजा भैया खुद लोगों के बीच जाकर खुद को उन जैसा ही बताते हैं.

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