यूपी चुनाव: किस दल को मिलेगा फायदा, कौन रहेगा नुकसान में

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UP elections: Akhilesh beats PM Modi in campaigning

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद अब सभी दलों को इन्तजार हैं 11 मार्च का. 11 मार्च को वोटों की गिनती का काम शुरू होगा व नतीजे आयेंगे. अब से मतगणना के दिन तक सभी दलों के नेता एक जैसा बयान देते नज़र आयेंगे कि इन चुनावों में उनका दल ही जीत रहा हैं. लेकिन आखिरकार जीतना तो किसी एक ही दल को हैं.

क्यूँ जरूरी हैं सभी दलों के लिए उत्तर प्रदेश में जीत हासिल करना.

देश की पांच विधानसभाओं के चुनाव अभी हाल फिलहाल में हुए हैं, जिनमे से सभी के परिणाम 11 मार्च को ही आने वाले हैं. इन पांच विधानसभाओं में पंजाब, मणिपुर, गोवा, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश हैं. लेकिन सबसे अधिक चर्चा उत्तर प्रदेश के चुनावों की हो रहे हैं. इसका एक कारण 2019 के लोकसभा के चुनाव भी हैं.प्रधानमंत्री मोदी एक जनसभा में उत्तर प्रदेश की जनता को उनके वोट की अहमियत भी बताते दिखे. जिस दल को भी यूपी में अधिक जनसमर्थन मिलेगा उस दल की केंद्र की राजनीति में भी पूछ बढ़ जायेगी. बीजेपी के नेता यूपी चुनावों को मध्यावधि चुनावों की तरह देख रहे हैं. किन भाजपा के लिए सबसे प्रमुख एवं निर्णायक चुनौती उत्तर प्रदेश जीतने की है. उत्तर प्रदेश की जीत इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि बिहार की पराजय के बाद हिन्दी हृदय-स्थल में बिना विजयी हुए भाजपा की 2019 की चुनावी मुहिम विश्वसनीय नहीं लगेगी. उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रधानमंत्री मोदी सहित 72 सांसद हैं. उत्तरप्रदेश में स्प्ष्ट बहुमत से कुछ भी कम मोदी की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह लगा देगी.

UP elections: Akhilesh beats PM Modi in campaigning

सपा के अखिलेश यादव पिता के हाथ से अपने हाथ में कमान लेने के बाद जीत से नयी पारी का आगाज करना चाहते हैं. अखिलेश वर्चस्व की लड़ाई में अपने पक्ष में नारे वाले चाटुकारों की बातों में कुछ इस तरह बह गये कि उन्होंने 25 वर्ष पुरानी समाजवादी पार्टी एवं पिता मुलायम सिंह की पिछड़ों एवं अल्प‍संख्यकों की शानदार विरासत को ही लात मार दी. जब महज़ 40 सीटें शिवपाल यादव को देकर समाजवादी कुनबे का एका बनाए रखा जा सकता था, तो आखिर क्यों कर अखिलेश ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस जैसी निर्जीव एवं थकी-हारी पार्टी को 105 सीटें उपहार में दे दी, यह बात तो अभी- भी समझ के भी परे है.  बहनजी भी लोकसभा चुनावों की हार को जीत में बदलते देखना चाहती हैं. साथ ही अगर बसपा इन विधानसभा चुनावों में जीतती हैं तो यूपी के मुस्लिमों को बसपा का विकल्प भी मिल जायेगा. लेकिन मायावती का दलित मुस्लिम समीकरण कितना काम करता ये देखने की बात हैं.

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